Bharat shasan adhiniyam 1935|भारत सरकार अधिनियम – GOVERNMENT OF INDIA ACT, 1935|#Indian polity|#mppsc

भारत शासन अधिनियम 1935 ब्रिटिश संसद द्वारा बनाया गया सबसे बड़ा अधिनियम इसमें 321 अनुच्छेद 10 अनुसूचियां तथा 14 भाग थे

वर्तमान संविधान पर भारत शासन अधिनियम 1935 का सर्वाधिक प्रभाव है इस कारण से भारत के संविधान को कई बार 1935 के अधिनियम की प्रतिलिपि ( copy ) कहा जाता है

साइमन कमीशन की रिपोर्ट , गोलमेज सम्मेलन में हुई चर्चाएं और 19 अक्टूबर 1934 को ब्रिटिश संसद में प्रस्तुत हुए श्वेत पत्र इस भारत शासन अधिनियम 1935 के प्रमुख आधार बने

इस अधिनियम की स्वयं की कोई प्रस्तावना नहीं थी इसमें 1919 के अधिनियम की प्रस्तावना को ही स्वीकार किया गया था

1935 के अधिनियम की सर्वाधिक आलोचना इस वजह से हुई क्योंकि इसकी खुद की कोई प्रस्तावना नहीं थी

इस अधिनियम द्वारा अखिल भारतीय संघ की स्थापना का प्रावधान किया गया इस अखिल भारतीय संघ में ब्रिटिश भारत एवं देसी रियासतें थी लेकिन देसी रियासतों को उनकी इच्छा पर छोड़ा गया कि वह इस संघ का हिस्सा बने या नहीं बने देसी रियासतों द्वारा विरोध किए जाने के कारण यह अखिल भारतीय संघ स्थापित नहीं हो पाया

इस अधिनियम की सर्वाधिक अच्छी विशेषता अखिल भारतीय संघ की स्थापना का प्रावधान था अर्थात अंग्रेजों ने पहली बार कहा कि पूरा भारत एक होगा यह अधिनियम भारत के राजनीतिक एकीकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जाता है

प्रांतों में दोहरा शासन समाप्त किया गया लेकिन केंद्र में लागू कर दिया गया अर्थात गवर्नर जनरल ने अपने कार्य को दो भागों में बांट दिया आरक्षित जो कि गवर्नर जनरल के पास होंगे तथा दूसरे हस्तांतरित जो भारत की जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि द्वारा किए जाएंगे

भारत में पहली बार संघीय न्यायालय ( federal Court) की स्थापना का प्रावधान किया गया इसके निर्णय के विरुद्ध लंदन की प्रिवी काउंसिल में अपील होती थी

संघीय न्यायालय की स्थापना 1 अक्टूबर 1937 में हुई इसके पहले मुख्य न्यायाधीश सर मोरिस ग्वेयर थे यह न्यायालय दिल्ली में स्थापित हुआ

Note – ऐसा न्यायालय जिसके निर्णय के विरुद्ध कहीं भी अपील नहीं होती सर्वोच्च न्यायालय (SC) कहलाता है

इस अधिनियम के द्वारा केंद्र स्तर पर पर संघीय लोक सेवा आयोग तथा राज्य स्तर पर राज्य लोक सेवा आयोग का गठन हुआ

Note1919 के अधिनियम द्वारा लोक सेवा आयोग अस्तित्व में आया जिसका नाम केंद्रीय लोक सेवा आयोग था इसकी स्थापना 1 अक्टूबर 1926 को हुई थी
1935 का अधिनियम संघीय लोक सेवा आयोग
1950 संघ लोक सेवा आयोग
1935 में राज्य लोक सेवा आयोग अस्तित्व में आया


इस अधिनियम द्वारा संघ व राज्यों के बीच विषयों का स्पष्ट बंटवारा किया गया इस हेतु तीन सूचियां बनाई गई
संघ सूची 59 विषय
राज्य सूची 54 विषय
समवर्ती सूची 36 विषय

अपशिष्ट विषय ( Residury power ) ऐसे विषय जिनका उल्लेख किसी भी सूची में शामिल नहीं है
इस अधिनियम के द्वारा अवशिष्ट विषय पर विधि बनाने का अधिकार गवर्नर जनरल को दे दिया गया

इसके द्वारा प्रांतों को स्वयतत्ता ( Autonomy ) दी गई

Note – 1919 के अधिनियम द्वारा गवर्नर ने अपने कार्यों को दो भागों में विभाजित कर रखा था लेकिन इस अधिनियम से प्रांतों में दोहरा शासन समाप्त कर दिया गया तथा प्रांत के सारे कार्यों को राज्य विधानमंडल में जनता द्वारा सरकार मे आए प्रतिनिधियों को दे दिया गया इस प्रकार प्रांतों में स्वयतत्ता दी गई

अधिनियम में निर्देशों के उपकरण ( instrument of instructions ) का उल्लेख था वर्तमान संविधान में इसे राज्य के नीति निर्देशक तत्व ( Directive principles of state policy ) कहते हैं

इस अधिनियम के द्वारा पहली बार प्रत्यक्ष निर्वाचन की व्यवस्था की गई तथा लगभग 10% जनता को मत देने का अधिकार दिया गया

1935 के अधिनियम के अनुरूप पहली बार चुनाव 1937 में हुए थे

Note – लोगों को वोट देने का पहली बार अधिकार मिला 1892
लोगों को वोट देने का प्रत्यक्ष अधिकार पहली बार मिला 1935

भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना का प्रावधान किया गया

अंग्रेज भारत में 11 राज्य थे जिनमें से 6 राज्यों में द्विसदनात्मक व्यवस्था थी

Note– केंद्र द्विसदनात्मक व्यवस्था 1919 के अधिनियम
प्रांत में द्विसदनात्मक व्यवस्था 1935 का अधिनियम

इस अधिनियम के द्वारा वर्मा को भारत से अलग किया गया तथा बर्मा के लिए अलग कानून बनाया गया

साइमन कमीशन की रिपोर्ट पर वर्मा को भारत से अलग किया गया वर्मा भारत का हिस्सा नहीं था लेकिन 1935 से पहले भारत और बर्मा के लिए एक साथ कानून बनता था

अदन को भी भारत से अलग कर एक स्वतंत्र उपनिवेश बना दिया|

इस अधिनियम के द्वारा बांबे से सिंध प्रांत को अलग किया गया बिहार एवं उड़ीसा प्रांत से बिहार , उड़ीसा अलग – अलग प्रांत बनाए गए

Noteबांबे से सिंध प्रांत को बनाया गया इसके पहले सिंध कोई प्रांत नहीं था

इस अधिनियम द्वारा भारत परिषद पद जोकि 1858 के भारत शासन अधिनियम द्वारा स्थापित था को समाप्त कर दिए गए

इस एक्ट में परिवर्तन करने के लिए ब्रिटिश संसद की अनुमति अनिवार्य थी

द डिस्कवरी ऑफ इंडिया में पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इस अधिनियम को दासता का अधिकार पत्र कहा है
क्योंकि इस अधिनियम में स्वतंत्रता का उल्लेख नहीं होने के कारण नेहरू ने दासता का अधिकार पत्र कहां है


द डिस्कवरी ऑफ इंडिया में से पंडित नेहरू ने इस अधिनियम की तुलना करते हुए कहा कि यह इंजन रहित गाड़ी है जिसमें अनेक ब्रेक लगे हैं स्वतंत्रता का उल्लेख नहीं होने के कारण इंजन रहित गाड़ी तथा अनेक ब्रेक लगे हुए हैं मतलब अच्छी व्यवस्था करने के बावजूद भी सारा पावर अपने पास रख लिया है जैसे केंद्र और राज्यों के बीच विषय बंटवारा कर लिया लेकिन अवशिष्ट विषय गवर्नर जनरल को दे दिया

मोहम्मद अली जिन्ना द्वारा 1935 के अधिनियम को कहा गया है कि यह पूर्णता सड़ा हुआ गला अस्वीकृति योग्य है क्योंकि जिन्ना के 14 सूत्रों में जो डिमांड है उसको पूरा नहीं किया गया था

पंडित जवाहरलाल नहेरू ने इसे “अनैच्छिक, अप्रजातांत्रिक और अराष्ट्रवादी” संविधान की संज्ञा दी

मदन मोहन मालवीय के अनुसार यह अधिनियम हम पर थोपा गया है बाहर से यह कुछ जनतंत्र या शासन व्यवस्था से मिलता जुलता है लेकिन अंदर से खोखला है

बंगाल के मुख्यमंत्री फजल उल हक ने कहा कि, “न तो यह हिन्दू राज है और न ही मुस्लिम राज है.”


एबी कीथ की पुस्तक भारत का संवैधानिक इतिहास ( The constitutional history of india ) में इस अधिनियम को कहा कि इस अधिनियम से भारतीयों को ऐसा लगा कि उन्हें सब कुछ मिल गया है लेकिन उसी समय इंग्लैंड वासियों ने भी यह महसूस किया कि उन्होंने कुछ भी नहीं खोया है

2 thoughts on “Bharat shasan adhiniyam 1935|भारत सरकार अधिनियम – GOVERNMENT OF INDIA ACT, 1935|#Indian polity|#mppsc”

Leave a Comment