सांची मध्य प्रदेश राज्य के रायसेन जिले में बेतवा नदी के तट पर स्थित एक छोटा सा गांव है ।
सांची को प्राचीन समय में काकानाया या काकानावा के नाम से जाना जाता था |
सांची के स्तूप का निर्माण मौर्य शासक अशोक द्वारा तीसरी शताब्दी में बौद्ध धर्म की दीक्षा लेने के बाद करवाया गया ।
सांची के स्तूप में वेदिका का निर्माण मौर्योत्तर काल में पुष्यमित्र शुंग द्वारा करवाया गया ।
सांची बौद्ध पर्यटन स्थल के लिए जाना जाता है ।
सांची पर बुद्ध का प्राचीन स्तूप है यह भारत का सबसे बड़ा बौद्ध स्तूप है जिसे महान स्तूप कहते हैं
सांची के स्तूप की खोज सन 1818 में जनरल टेलर द्वारा किया गया ।
सांची स्तूप का व्यास 36.5 मीटर और ऊंचाई लगभग 21.64 मीटर है ।
सन 1912 में सर जान मार्शल पुरातत्व विभाग के महानिदेशक ने इस स्थल पर खुदाई कार्य का आदेश दिया ।
सांची का स्तूप पक्की ईंटों से बना हुआ है।
सांची के स्तूप में चार तोरण द्वार हैं।
सांची के स्तूप को 1989 में विश्व धरोहर सूची में शामिल किया गया वर्तमान में यूनेस्को की एक परियोजना के तहत सांची तथा एक अन्य बौद्ध स्थल सतधारा कि आगे खुदाई, संरक्षण तथा पर्यावरण का विकास किया जा रहा है।
सांची के स्तूप में बुद्ध के अवशेष रखे हुए हैं।
सांची स्तूप के पास दो अन्य छोटे स्तूप भी हैं जिनमें से स्तूप क्रमांक 2 में उनके दो शिष्यों सारिपुत्र और महा मोगल्लायाना के अवशेष रखे गए हैं।
सांची के स्तूप के समीप एक बौद्ध मठ के अवशेष हैं यहां बौद्ध भिक्षुओं के आवास थे यहीं पर पत्थर का एक विशाल कटोरा है जिससे भिक्षुओ में अन्न बांटा जाता था ।
सांची के स्तूप के शिलालेख ब्राम्ही लिपि में है ।
सांची के स्तूप में देखी जाने वाली सजावट की शैली को भरहुत कहा जाता है।
सांची में उत्खनन के दौरान खोजी गई वस्तुओं को रखने के उद्देश्य से 1919 में सर जॉन मार्शल द्वारा सांची की पहाड़ी की चोटी पर एक छोटा सा संग्रहालय स्थापित किया गया ।
सांची स्तूप के तोरण द्वार पर बुद्ध के जीवन की झलकियों उत्कीर्ण है ।
एकमात्र सांची ऐसा स्थान है जहां बौद्ध कालीन शिल्प कला के सारे नमूने विद्यमान हैं यहां के स्तूप चैत्य और बिहार सभी बौद्ध कला के सर्वोत्कृष्ट नमूने हैं ।