इस पोस्ट में हम मध्य प्रदेश के प्रमुख साहित्यकारों की विस्तार पूर्वक चर्चा करेंगे जिससे मध्य प्रदेश के सभी एग्जाम में पूछे जाने वाले प्रश्नों को हल किया जा सके I
मध्य प्रदेश प्राचीन काल से ही भारतीय साहित्य के महत्वपूर्ण व्यक्तित्व एवं उनके साहित्य की जन्म स्थली रहा है।
Table of Contents
Madhya Pradesh ke Sahityakar
प्राचीन काल के साहित्यकार | कालिदास ,भर्तृहरि ,भवभूति , बाणभट्ट |
मध्यकालीन साहित्यकार | केशवदास , पद्माकर , भूषण , बिहारी |
आधुनिक कालीन साहित्यकार | पंडित माखनलाल चतुर्वेदी , सुभद्रा कुमारी चौहान , गजानन माधव मुक्तिबोध , बालकृष्ण शर्मा नवीन , भवानी प्रसाद मिश्र , हरिशंकर परसाई , मुल्ला रामोजी , शरद जोशी , डॉ शिवमंगल सिंह सुमन |
लोक साहित्यकार | संत सिंगाजी , ईश्वरी , जगनिक , घाघ दुबे |
MP के प्राचीन काल के साहित्यकार एवं उनकी प्रमुख रचनाएं
साहित्यकार | प्रमुख रचनाएं |
कालिदास | कुमारसंभवम् , रघुवंशरघुवंशम् , मेघदूतम् , ऋतुसंहारम् , अभिज्ञानशाकुंतलम् , विक्रमोर्वशीयम् , मालविकाग्निमित्रम् |
भर्तृहरि | श्रृंगार शतक , नीति शतक , वैराग्य शतक |
भवभूति | महावीर चरित्र , मालती माधव , उत्तररामचरित |
बाणभट्ट | हर्षचरित , कादंबरी , चंडी शतक , पार्वती परिणय , मुकुट तड़ित |
मध्यप्रदेश के प्राचीन काल के साहित्यकार ( Ancient writers of M.P. )
कालिदास (Kalidas )
कालिदास किस काल में हुए और मूलतः किस स्थान से थे, इसमें काफी विवाद रहा है लेकिन इतिहासकार कालिदास को चौथी पांचवी शताब्दी ईस्वी स्वीकार करते हैं तथा उन्हें उज्जैन नरेश गुप्त शासक चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के दरबार के नवरत्नों में से एक मानते हैं ।
मेघदूतम से पता चलता है कि कालिदास उज्जैन के निवासी थे। कुछ विद्वान उन्हें उत्तराखंड और कुछ कश्मीर का मानते हैं।
कालिदास संस्कृत साहित्य के सर्वोत्कृष्ट कवि एवं नाटककार माने जाते हैं ।
कालिदास कवि कुलगुरु एवं कवि शिरोमणी के रूप में विख्यात हैं।
कालिदास की सात प्रमाणिक रचनाएं मिलती हैं जिनमें से दो महाकाव्य , दो खंडकाव्य तथा तीन नाटक है ।
महाकाव्य – कुमारसंभवम् , रघुवंशरघुवंशम्
खंडकाव्य – मेघदूतम् , ऋतुसंहारम्
नाटक – अभिज्ञानशाकुंतलम् , विक्रमोर्वशीयम् , मालविकाग्निमित्रम्
ऋतुसंहारम् कालिदास की प्रथम रचना है जो खंडकाव्य के रूप में है I
कालिदास की सर्वकालिक श्रेष्ठ कृति अभिज्ञानशाकुंतलम् है जिसके लिए इन्हें भारत का शेक्सपियर कहा जाता है इसमें राजा दुष्यंत और शकुंतला की प्रेम प्रसंग को नाटक के रूप में वर्णित किया है यह संस्कृत की पहली रचना थी जिसका अंग्रेजी में अनुवाद किया गया ।
अभिज्ञान शाकुंतलम् कालिदास का अंतिम नाटक है I
विक्रमोर्वशीयम मैं उर्वशी और पुरुरवा की कथा है ।
मालविकाग्निमित्रम् कालिदास का पहला नाटक है जिसमें शुंग वंश के राजा अग्निमित्र तथा उनकी प्रेमिका मालविका के प्रेम का चित्रण है ।
मेघदूत में उज्जैन तथा अमरकंटक की सुंदरता की व्याख्या किया गया है ।
मेघदूत में नौ खंड है इसमें एक खंड का नाम रेवा खंड है जिसमें नर्मदा नदी में कई झरने होने के कारण कालिदास जी ने इसका नाम बंदर कूदनी दिया है ।
कुमारसंभवम् कालिदास का प्रथम महाकाव्य है जिसमें शिव पार्वती विवाह एवं कार्तिकेय के जन्म से संबंधित धार्मिक कथा है ।
रघुवंशम् कालिदास का दूसरा महाकाव्य है जिसका विषय रामायण से लिया गया है ।
आधुनिक काल में कालिदास
कालिदास को लोकप्रिय बनाने में दक्षिण भारतीय भाषाओं की फिल्मों का भी योगदान है।
हिंदी लेखक मोहन राकेश ने कालिदास के जीवन पर एक नाटक ‘आषाढ़ का एक दिन’ की रचना की।
भर्तृहरि ( Bhartrihari )
भर्तृहरि, राजा विक्रमादित्य उपाधि धारण करने वाले उज्जैन नरेश चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के बड़े भाई थे
राजा भर्तृहरि अनुमानतः 550 ई. का जन्म माना गया है।
इनके पिता का नाम चंद्रसेन था, तथा उनकी पत्नी का नाम पिंगला था।
भर्तृहरि मूलतः संस्कृत भाषा के संत कवि के रूप में जाने जाते हैं
भर्तृहरि मुक्तक तथा शतक काव्य के अग्रदूत थे।
भर्तृहरि का पथ वैराग्य-पथ कहलाता है। इनके अनुयायी आज पुष्कर से 18 मील दूर साईं में बसते हैं।
भर्तृहरि की साधना स्थली उत्तर प्रदेश का चुनार नामक स्थान है, तथा राजस्थान का सरिस्का क्षेत्र समाधि स्थल, उज्जैन में गढ़काली मंदिर के समीप स्थित भर्तृहरि की गुफाएं भर्तृहरि तथा बाबा गोरखनाथ की योग-साधना स्थली थी।
भर्तृहरि ने वैराग्य धारण किया तथा अपना गुरु बाबा गोरखनाथ को बनाया।
राजस्थान के अलवर में भर्तृहरि का मंदिर है। इन्होंने गुरु गोरखनाथ का शिष्य बनकर वैराग्य धारण कर लिया था, इसलिए इन्हें बाबा भरथरी भी कहा जाता है।
रचनाएं – श्रृंगार शतक , नीति शतक , वैराग्य शतक
भर्तहरि व्याकरणचार्य के रूप में प्रसिद्ध है इनकी प्रमुख तीन व्याकरणिक रचनाएं प्रसिद्ध है महाभाष्य टीका , वाक् पदीय और शब्द धातु समीक्षा।
भवभूति ( Bhavabhuti )
जन्म स्थान – पद्मपुर ( विदर्भ वर्तमान महाराष्ट्र के गोंदिया जिले में जो मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र की सीमा पर स्थित है)
मूल नाम – श्रीकंठ
भवभूति कन्नौज के राजा यशोवर्मन के दरबारी कवि और नाटककार थे
भवभूति ने अपने काव्य में संस्कृत भाषा का प्रयोग गंभीर नाट्य शैली में किया है
संस्कृत साहित्य में भवभूति की तुलना अंग्रेजी के साहित्यकार मिल्टन से की जाती है इन्हें भारतीय मिल्टन कहा जाता है
भवभूति अपने तीन नाटकों के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध थे – महावीर चरित्र , मालती माधव , उत्तररामचरित
इनके नाटकों में सबसे लोकप्रिय मालती माधव है जिसमें करुण छात्र का उज्जैन दरबार के मंत्री की पुत्री मालती से प्रेम का चित्रण है
महावीर चरित्र कुछ परिवर्तन के साथ रामायण पर आधारित है
उत्तररामचरित भवभूति की सर्वश्रेष्ठ कृति है जिसमें कथा सीता के निष्कासन से प्रारंभ होती है और वनवास के बाद अयोध्या के राज सिंहासन पर आसीन होने से समाप्त होती है
उत्तररामचरित को संस्कृत का प्रथम दुखांत नाटक माना जाता है
बाणभट्ट ( Banabhatta )
बाणभट्ट सातवीं शताब्दी के संस्कृत गद्य लेखक और कवि थे
बाणभट्ट थानेश्वर के वर्धन वंश के शासक हर्षवर्धन के दरबारी कवि थे
महाकवि बाणभट्ट ने गद्य रचना क्षेत्र में वही स्थान प्राप्त किया जो कालिदास ने संस्कृत काव्य के क्षेत्र में
रचनाएं – हर्षचरित , कादंबरी , चंडी शतक , पार्वती परिणय , मुकुट तड़ित
प्रकृति चित्रण अद्भुत होने के कारण इन्हें साहित्य के वनांचल का केसरी भी कहा जाता है
हर्ष चरित्र में राजा हर्षवर्धन के जीवन चरित्र का वर्णन किया गया है
कादंबरी दुनिया का पहला उपन्यास था इसमें एक राजकुमारी का वर्णन किया गया है यह बाणभट्ट की अपूर्ण रचना है इसे उनके पुत्र भूषण भट्ट ने पूर्ण किया था
MP के मध्यकालीन साहित्यकार एवं उनकी प्रमुख रचनाएं
साहित्यकार | प्रमुख रचनाएं |
केशवदास | रामचंद्रिका, रसिकप्रिया, कविप्रिया, विज्ञानगीता, रतनबावनी, वीरसिंहदेव चरित्र, जहांगीर-जस-चंद्रिका, मंजरी, नख-शिख। |
पद्माकर | प्रबोध पचासा, रामरसायन, गंगालहरी, यमुना लहरी , अलीजाप्रकाश, हिम्मतबहादुर विरुदावली, प्रतापसिंह विरुदावली, जयसिंह विरुदावली, जगतविनोद, रीतिग्रंथ, पद्माभरण आदि। |
भूषण | शिवराजभूषण, शिवाबवानी, छत्रसाल दशक, भूषण उल्लास, एवं दूषण उल्लास और भूषण हजारा |
बिहारी | बिहारी सतसई (719 दोहे संकलित) |
मध्यप्रदेश के मध्यकालीन साहित्यकार ( Medieval writers of M.P. )
केशवदास ( Keshavdas )
जन्म – 1555
जन्म स्थान – ओरछा में
केशव दास के पिता का नाम पंडित काशीराम था जो ओरछा नरेश मधुकर शाह के प्रिय मित्र थे
केशवदास स्वयं महाराज इंद्रजीत सिंह के दरबारी कवि , मंत्री और गुरु थे
इन्हें रीतिकाल का प्रथम आचार्य और महाकवि माना जाता है
इनके काव्य की भाषा ब्रजभाषा है इस पर संस्कृत और बुंदेलखंडी भाषा का काफी प्रभाव रहा है
इन्होंने अपने काव्य में भाव पक्ष की अपेक्षा कला पक्ष को अधिक प्रधानता दी है
इनके काव्यों में लक्षण ग्रंथों की प्रधानता रही है।
रचनाएं- रामचंद्रिका, रसिकप्रिया, कविप्रिया, विज्ञानगीता, रतनबावनी, वीरसिंहदेव चरित्र, जहांगीर-जस-चंद्रिका, मंजरी, नख-शिख।
इन्हें कठिन काव्य का प्रेत और हृदयहीन कवि भी कहा जाता है
पद्माकर ( Padmakar )
जन्म – 1753 ई.
मृत्यु – 1833 ई. ( 80 वर्ष की आयु में )
जन्म स्थान – विश्वनाथ प्रसाद मिश्र के अनुसार – सागर रामचंद्र शुक्ल के अनुसार – बांदा
वास्तविक नाम – प्यारेलाल
पद्माकर रीतिकाल के अंतिम सर्वश्रेष्ठ और प्रतिनिधि कवि माने जा सकते हैं
पद्माकर के काव्यो में भाव पक्ष तथा कला पक्ष दोनों का समान विकास दिखाई देता है
इन्होंने श्रंगार के संयोग और वियोग दोनों पक्षों का सरल चित्रण किया है
कविता में ब्रजभाषा का शुद्ध साहित्यिक रूप मिलता है
इनकी शैली चित्रात्मक स्वाभाविक व सशक्त है भाषा स्पष्ट मधुर व प्रभावपूर्ण है
पद्माकर को जयपुर नरेश महाराज प्रताप सिंह ने कविराज शिरोमणि की उपाधि प्रदान की। जयपुर में रहते समय इन्होंने अपने लक्षण ग्रंथ ‘पद्माभरण’ की रचना की जो दोहो में लिखा गया है।
रचनाएं – प्रबोध पचासा, रामरसायन, गंगालहरी, यमुना लहरी , अलीजाप्रकाश, हिम्मतबहादुर विरुदावली, प्रतापसिंह विरुदावली, जयसिंह विरुदावली, जगतविनोद, रीतिग्रंथ, पद्माभरण आदि।
अलीजाप्रकाश की रचना ग्वालियर के महाराज दौलतराव सिंधिया के दरबार में की थी
भूषण ( Bhushan )
जन्म – 1613 ईसवी ( आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार )
जन्म स्थान – तिकवांपुर ग्राम ( कानपुर जिले )
मृत्यु – 1715
वास्तविक नाम – घनश्याम
भूषण दास रीतिकाल के तीन प्रमुख कवियों में से एक हैं। अन्य दो कवि बिहारी तथा केसव दास थे।
रीति काल में जब सारे कवि श्रृंगार रस में रचना कर रहे थे, वीर रस में प्रमुखता से रचना कर भूषण ने अपने को सबसे अलग साबित किया।
भूषण को मध्यकालीन हिंदी काव्य का वीर रस का सर्वश्रेष्ठ कवि कहलाने का गौरव प्राप्त हुआ।
इन्हें भूषण की उपाधि चित्रकूट के राजा ह्रदयराम के पुत्र रुद्रशाह ने प्रदान की थी।
भूषण की भाषा बजभाषा है, परंतु उन्हें आवश्यकता अनुसार प्रचलित शब्दों का भी प्रयोग किया है।
भूषण मुक्तक शैली में काव्य रचना की। इन्होंने भक्ति, सवेया, दोहा और रोला छंदो को अपनाया है।
प्रमुख रचनाएं – विद्वानों के अनुसार उन्होंने छह ग्रंथ लिखे हैं। शिवराजभूषण, शिवाबवानी, छत्रसाल दशक, भूषण उल्लास, एवं दूषण उल्लास और भूषण हजारा
बिहारी ( Bihari )
जन्म – 1603 ई.
स्थान – ग्वालियर
मृत्यु – 1664 ई.
उनके पिता का नाम केशवराय था।
बिहारी की एकमात्र रचना बिहारी सतसई (सप्तशती) है। यह मुक्तक काव्य रचना है। इसमें 719 दोहे संकलित हैं।
सतसई में ब्रज भाष ब्रजभाषाब्रजभाषासा का प्रयोग हुआ है। → भाषा शैली – बिहारी की भाषा शुद्ध साहित्यिक ब्रज भाषा है। इसमें सूरदास की चलती बजभाषा, फारसी आदि के शब्द भी उपयोग किये गए हैं। बिहारी का शब्द चयन बड़ा सुंदर और सार्थक हैं। विषय के अनुसार बिहारी की शैली तीन प्रकार की हैं।
माधुर्य पूर्ण व्यंजना प्रधानशैली, प्रसादगुण से युक्त सरलशैली, चमत्कार पूर्ण शैली
बिहारी की कविता का मुख्य विषय श्रृंगार हैं। श्रृंगार के संयोग और वियोग दोनों ही पक्षों का वर्णन किया है। प्रकृति चित्रण में बिहारी किसी से पीछे नहीं रहें हैं।
MP के आधुनिक कालीन साहित्यकार एवं उनकी प्रमुख रचनाएं
साहित्यकार | प्रमुख रचनाएं |
पंडित माखनलाल चतुर्वेदी | पुष्प की अभिलाषा , हिमकिरीटनी, हिमतरंगिनी , मरण ज्वार, माता , युगचरण , समर्पण , गूंजेधरा , धूम्रवलय , साहित्य देवता, अमीर इरादे गरीब इरादे , कृष्णार्जुन युद्ध , कला का अनुवाद, कहास और कहावत , समय के पाँव , कैसा छंद बना देती , बरसाते बोछारों वाली |
सुभद्रा कुमारी चौहान | झांसी की रानी , राखी की चुनौती , बचपन , सभा के खेल , सीधे-साधे चित्र ( बाल साहित्य ) , वीरों का कैसा हो बसंत , मुकुल ( काव्य संग्रह ) , त्रिधरा ,बिखरे मोती ,उन्मादिनी ( कहानी ) |
गजानन माधव मुक्तिबोध | चांद का मुंह टेढ़ा है , कामायनी : एक पुनर्विचार , दिनकर की उर्वशी , भूरी भूरी खाक , नए निबंध , धूल , एक साहित्यिक डायरी , नई कविता का आत्मसंघर्ष , साहित्य का सौंदर्यशास्त्र , चंबल की छाती , काठ का सपना , तार सप्तक , सतह से उठता आदमी , ब्रह्मराक्षस का शिष्य |
बालकृष्ण शर्मा नवीन | कुमकुम , रश्मि रेखा , हम विषपाई जन्म के , उर्मिला , अपलक |
भवानी प्रसाद मिश्र | गांधी पंचशती , गीतफरोश , चकित है दुख , अंधेरी कविताएं , खुशबू के शिलालेख , बुनी हुई रस्सी , व्यक्तिगत, परिवर्तन के लिए |
हरिशंकर परसाई | हंसते हैं रोते हैं , भोलाराम का जीव , जैसे उनके दिन फिरे , तट की खोज , रानी नागफनी की कहानी , ज्वाला और जल , तिरछी रेखाएं , भूत के पांव पीछे , माटी कहे कुम्हार से , अपनी-अपनी बीमारी , बेईमानी की परत , प्रेमचंद के फटे जूते , तब की बात और थी , परसाई रचनावली , ठिठुरता हुआ गणतंत्र , विकलांग श्रद्धा का दौर , वैष्णव की फिसलन |
मुल्ला रामोजी | गुलाबी उर्दू , मिकलात गुलाबी उर्दू , इतिखाब-ए-गुलाबी उर्दू , लाठी और भैंस , औरत जात , शिफाखाना , गुलाबी शादी , अंगूरा , जिंदगी , शिफा खाना |
शरद जोशी | फिर किसी बहाने , जीप पर सवार इल्लियां , रहा किनारे बैठ , परिक्रमा तिलिस्म , यथासंभव , दूसरी सतह , हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे , एक था गधा , अंधों का हाथी , उत्सव , गोधूलि , सांच को आंच नहीं , क्षितिज , छोटी सी बात , विक्रम बेताल , सिंहासन बत्तीसी , वाह जनाब , ये जो है जिंदगी |
डॉ शिवमंगल सिंह सुमन | हिल्लोल , मिट्टी की बारात, विश्वास बढ़ता ही गया , प्रलय सृजन , पर आंखें नहीं भरी , विंध्य हिमालय , युगों का मोल , जीवन के गान , वाणी व्यथा |
मध्यप्रदेश के आधुनिक कालीन साहित्यकार ( Modern writers of M.P.)
पंडित माखनलाल चतुर्वेदी(Pandit Makhanlal chaturvedi)
जन्म – 1889
जन्म स्थान – बाबई नगर ( होशंगाबाद )
मध्यप्रदेश शासन द्वारा बावई नगर का नाम माखननगर कर दिया गया है।
इनके पिता का नाम नंदलाल चतुर्वेदी तथा माता का नाम सुन्दरीबाई था I
इन्हें एक भारतीय आत्मा के नाम से भी जाना जाता है I
चतुर्वेदी जी कवि, लेखक और पत्रकार थे।
इनके जीवन पर लोकमान्य तिलक और महात्मा गांधी का अत्यधिक प्रभाव पड़ा।
1913 में उन्होंने अपनी शिक्षक की नौकरी छोड़ दी और पूरी तरह स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो गए।
पत्रकारिता, लेखन, साहित्य, समाचार पत्र-सम्पदान का काम करने लगे।
गणेश शंकर विद्यार्थी कानपुर से प्रताप’ नामक समाचार का संपादन करते थे, बाद में यह कार्य माखनलाल जी को सौंपा गया।
1920 में गांधी जी ने असहयोग आंदोलन शुरू किया जिसमें मध्यभारत प्रान्त से पहली गिरफ्तारी चतुर्वेदी जी ने ही दी।
1930 के सविनय अवज्ञा आंदोलन में भी पहली गिरफ्तारी इन्होंने दी।
चतुर्वेदी जी की भाषा सहज व सरल है। हिंदी, उर्दू, फारसी, सभी भाषाओं के प्रचलित शब्दो का प्रयोग इन्होंने किया है। चतुर्वेदी जी ने सामान्यतः खड़ीबोली को ही काव्य का माध्यम बनाया है।
माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रिका एवं संचार विश्वविद्यालय – भोपाल ( स्थापना 1990 )
रचनाएं :-
काव्य– पुष्प की अभिलाषा , हिमकिरीटनी, हिमतरंगिनी , मरण ज्वार, माता , युगचरण , समर्पण , गूंजेधरा , धूम्रवलय
निबंध– साहित्य देवता, अमीर इरादे गरीब इरादे
नाटक– कृष्णार्जुन युद्ध
कहानी– कला का अनुवाद, कहास और कहावत
संस्मरण– समय के पाँव
Note :- कैसा छंद बना देती , बरसाते बोछारों वाली इन्हीं की रचनाएं हैं
उपलब्धियां :-
प्रभा मसिक पत्रिका का संपादन (1913) I
कर्मवीर समाचार पत्र का संपादन किया I
प्रताप पत्रिका का संपादन कार्य सम्भाला (1923) I
मध्यप्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन (रायपुर अधिवेशन) के सभापति (1942) I
भारत छोड़ो आन्दोलन के सक्रिय कार्यकर्ता (1942) I
पुरस्कार :-
हिमकिरीटनी के लिए देव पुरस्कार (1943)
हिमतरंगिनी के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार (1954)
पद्मभूषण पुरस्कार (1963)
सुभद्रा कुमारी चौहान ( Subhadrq Kumari chauhan )
जन्म – 1904
जन्म स्थान – निहालपुर ( इलाहाबाद )
मृत्यु – 1948 ( कार दुर्घटना से )
विवाह – खंडवा के राजा लक्ष्मण सिंह से
गांधी जी के साथ असहयोग आंदोलन में भाग लेने वाली प्रथम महिला थी I
झांसी की रानी नामक रचना के लिए शेक्सपियर पुरस्कार से नवाजा गया था I
रचनाएं – झांसी की रानी , राखी की चुनौती , बचपन , सभा के खेल , सीधे-साधे चित्र ( बाल साहित्य ) , वीरों का कैसा हो बसंत , मुकुल ( काव्य संग्रह ) , त्रिधरा ,बिखरे मोती ,उन्मादिनी ( कहानी )
गजानन माधव मुक्तिबोध ( Gajanan madhav muktibodh )
जन्म – 1917
जन्म स्थान – श्योपुर
रचनाएं :-
चांद का मुंह टेढ़ा है , कामायनी : एक पुनर्विचार , दिनकर की उर्वशी , भूरी भूरी खाक , नए निबंध , धूल , एक साहित्यिक डायरी , नई कविता का आत्मसंघर्ष , साहित्य का सौंदर्यशास्त्र , चंबल की छाती , काठ का सपना , तार सप्तक , सतह से उठता आदमी , ब्रह्मराक्षस का शिष्य
प्रयोगवादी कवि I
बालकृष्ण शर्मा नवीन ( Balkrishna sharma naveen )
जन्म – 1897
जन्म स्थान – मयाना ग्राम ( शाजापुर )
रचनाएं – कुमकुम , रश्मि रेखा , हम विषपाई जन्म के , उर्मिला , अपलक
छायावादी कवि हैं I
संसद के सदस्य रहे हैं I
भवानी प्रसाद मिश्र ( Bhavani prashad mishra )
जन्म -1914
जन्म स्थान – ग्राम टिकरिया ( होशंगाबाद )
रचनाएं :- गांधी पंचशती , गीतफरोश , चकित है दुख , अंधेरी कविताएं , खुशबू के शिलालेख , बुनी हुई रस्सी , व्यक्तिगत, परिवर्तन के लिए
इन्हें 1917 में बुनी हुई रस्सी के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला I
गांधी पंचशती इनका महाकाव्य है I
हरिशंकर परसाई ( Harishankar parsai )
जन्म – 1924
जन्म स्थान – जमानी ग्राम ( होशंगाबाद ) निधन 1995
रचनाएं :-
कहानी संग्रह – हंसते हैं रोते हैं , भोलाराम का जीव , जैसे उनके दिन फिरे
उपन्यास – तट की खोज , रानी नागफनी की कहानी , ज्वाला और जल
संस्मरण – तिरछी रेखाएं
लेख संग्रह – भूत के पांव पीछे , माटी कहे कुम्हार से , अपनी-अपनी बीमारी , बेईमानी की परत , प्रेमचंद के फटे जूते , तब की बात और थी , परसाई रचनावली
निबंध संग्रह – ठिठुरता हुआ गणतंत्र , विकलांग श्रद्धा का दौर , वैष्णव की फिसलन
इन्होंने जबलपुर में वसुधा नामक मासिक पत्रिका का प्रकाशन किया रहरी के संपादक भी रहे I
इनकी शैली मुख्य रूप से व्यंगात्मक है I
हरिशंकर परसाई हिंदी के पहले रचनाकार हैं जिन्होंने व्यंग को विधा का दर्जा दिलाया I
इनको विकलांग श्रद्धा का दौर रचना के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला I
मुल्ला रामोजी ( Mulla Ramoji )
जन्म – 1896
जन्म स्थान – भोपाल
मृत्यु – 1952
पूरा नाम – मोहम्मद सिद्धकी मुल्ला रामूजी
इनकी पहली पुस्तक गुलाबी उर्दू के नाम से प्रकाशित हुई इस कारण से इन्हें गुलाबी उर्दू का जनक कहा जाता है I
उर्दू अकादमी ने अपने भवन का नाम मुल्ला रामू जी के नाम पर रखकर ना केवल मध्यप्रदेश , बल्कि संपूर्ण भारत के उर्दू साहित्य को सम्मानित किया I
रामूजी मुख्यतः व्यंगकार थे I
गुलाबी उर्दू शैली इनकी अपनी खोज थी जिसमें उन्होंने कुरान शरीफ के उर्दू अनुवाद के तरीके को अपनाया I
रामू जी शायरी भी किया करते थे व अंग्रेजो के खिलाफ व्यंगपूर्ण नज्में भी लिखी I
रचनाएं :-
गुलाबी उर्दू , मिकलात गुलाबी उर्दू , इतिखाब-ए-गुलाबी उर्दू , लाठी और भैंस , औरत जात , शिफाखाना , गुलाबी शादी , अंगूरा , जिंदगी , शिफा खाना
शरद जोशी ( Sharad Joshi )
जन्म – 1931
जन्म स्थान – उज्जैन
निधन – 1991 ( मुंबई )
गुरु – हरिशंकर परसाई
इनकी शैली मुख्य रूप से व्यंग्यात्मक है I
इन्होंने मध्य प्रदेश सरकार के सूचना और प्रकाशन विभाग में काम किया लेकिन अपने लेखन के कारण सरकारी नौकरी छोड़ दी I
इनकी रूचि कहानियों पर आधारित लापतागंज धारावाहिक बनाया गया I
इन्होंने मुंबई से प्रकाशित हिंदी एक्सप्रेस का संपादन कार्य किया I
भारत सरकार ने शरद जोशी जी को पद्म श्री से सम्मानित किया (1990 ) I
मध्य प्रदेश सरकार ने उनकी स्मृति में 1992-93 से शरद जोशी राष्ट्रीय सम्मान की स्थापना की प्रथम शरद जोशी पुरस्कार हरिशंकर परसाई को मिला I
रचनाएं :-
व्यंग्य संग्रह – फिर किसी बहाने , जीप पर सवार इल्लियां , रहा किनारे बैठ , परिक्रमा तिलिस्म , यथासंभव , दूसरी सतह , हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे
नाटक – एक था गधा , अंधों का हाथी
फिल्म लेखन – उत्सव , गोधूलि , सांच को आंच नहीं , क्षितिज , छोटी सी बात आदि I
दूरदर्शन धारावाहिक – विक्रम बेताल , सिंहासन बत्तीसी , वाह जनाब , ये जो है जिंदगी आदि I
डॉ शिवमंगल सिंह सुमन ( Dr. Shivmangal singh suman )
जन्म – 1915
जन्म स्थान – उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले में
निधन – 2002 ( उज्जैन )
इनकी प्रारंभिक शिक्षा रीवा व ग्वालियर में हुई इसके बाद उच्च शिक्षा हेतु बनारस हिंदू विश्वविद्यालय गए जहां से इन्होंने डी लिट की उपाधि प्राप्त की I
रचनाएं – हिल्लोल , मिट्टी की बारात, विश्वास बढ़ता ही गया , प्रलय सृजन , पर आंखें नहीं भरी , विंध्य हिमालय , युगों का मोल , जीवन के गान , वाणी व्यथा
1936 में इनका कविता संग्रह हिल्लोल प्रकाशित हुआ I
विश्वास बढ़ता ही गया पर आपको देव पुरस्कार प्राप्त हुआ I
1976 में मिट्टी की बारात कब काव्य संग्रह के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार प्रदान किया गया I
साहित्य में उल्लेखनीय योगदान के लिए डॉक्टर शिवमंगल सिंह सुमन जी को भारत सरकार द्वारा वर्ष 1974 में पद्मश्री एवं वर्ष 1999 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया I
MP के लोक साहित्यकार एवं उनकी प्रमुख रचनाएं
लोक साहित्यकार | प्रमुख रचनाएं |
संत सिंगाजी | परचरी |
ईश्वरी | ईश्वरी की फागें |
जगनिक | आल्हाखंड , परमालरासो |
घाघ दुबे | घाघ भड्डरी की कहावतें |
मध्यप्रदेश के लोक साहित्यकार ( Folk writers of M.P. )
संत सिंगाजी ( Sant Singaji )
जन्म – 1571 खजूरी गांव खरगोन
मृत्यु स्थल – नर्मदा के समीप
इनका एकमात्र प्रमाणिक ग्रंथ परचरी है जिसका संकलन इनके शिष्य खेमदास द्वारा किया गया I
संत सिंगाजी कबीर के समकालीन माने जाते हैं ।
इनकी स्मृति (मृत्यु ) में प्रतिवर्ष शरद पूर्णिमा को ग्राम पिपलिया मे उनकी समाधि पर मेला लगता है I
सिंगाजी की काव्य भाषा निमाड़ी है ।
डॉ. श्रीराम परिहार की ” कहे जन सिंगा “ पुस्तक में सिंगाजी के 108 प्रमाणिक लोक पद संकलित कर अनुवाद सहित दिए हैं जो मध्य प्रदेश आदिवासी लोक कला परिषद से प्रकाशित हुआ है I
ईश्वरी ( Ishwari )
जन्म – 1831 मेंढकी गांव ( झांसी जिला उत्तर प्रदेश )
बुंदेलखंड के लोकप्रिय कवि है
पूरा नाम – ईश्वर प्रसाद अड़जरिया
पिता – पंडित भोलानाथ तिवारी
इन्हें बुंदेलखंड का जयदेव कहा जाता है I
रचना – ईश्वरी की फागें
इन्होंने बुंदेली फाग में चौघड़िया का आरंभ किया ।
जगनिक ( Jaganik )
जगनिक कलिंजर के राजा परमाल चंदेल के दरबारी कवि थे ।
रचना – आल्हाखंड , परमालरासो
वर्तमान समय में इनका केवल आल्हाखंड उपलब्ध है ।
महोबा के दो प्रसिद्ध वीरो आल्हा एवं उदल की वीर गाथा का विस्तृत वर्णन एक वीरगाथात्मक काव्य के रूप में लिखा था ।
आल्हा खंड की भाषा बुंदेली की उप बोली बनाफारी है ।
आल्हा खंड में 52 युद्धों का वर्णन है ।
आल्हा गाने वाले लोग अल्हैत कहलाते हैं I
आल्हा खंड की पांडुलिपि तैयार करने वाला अंग्रेज → चार्ल्स इलियट था I
विंसेंट स्मिथ ने बुंदेलखंड में इस काव्य का संग्रह किया था I
घाघ दुबे (Ghagh Dubey )
जन्म – 1753 कन्नौज
रचनाएं – घाघ भड्डरी की कहावतें
घाघ मूलतः लोक कवि थे I
घाघ की कहावतें कृषि एवं मौसम की जानकारी से परिपूर्ण है I
इनके द्वारा की गई रचनाएं कृषकों के लिए कृषि मार्गदर्शन का कार्य करती थी I
इन्होंने अपनी कहावतों से यह सिद्ध कर दिया कि यह एक महान कृषि पंडित थे इन्हें कृषि वैज्ञानिक भी कहा जाता है I
मध्य प्रदेश के प्रमुख कवि घाघ मुगल बादशाह अकबर के समकालीन थे सम्राट अकबर द्वारा इन्हें चौधरी की उपाधि प्रदान की गई थी I
आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने घाघ को कवि ना कहकर सूक्तिकार कहा है I
पंडित राम नरेश त्रिपाठी ने घाघ की रचनाओं को मौखिक परंपरा में संगठित करके सबसे पहले सन् 1931 में हिंदुस्तानी अकादमी इलाहाबाद से प्रकाशित किया था ।
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