प्रस्तावना|भारतीय संविधान की प्रस्तावना|संविधान की प्रस्तावना एवं इसमें निहित शब्दों के अर्थ|Preamble of Indian constitution|#Indian polity

Table of Contents

प्रस्तावना क्या है ? ( What is preamble ? )

प्रस्तावना वह डाक्यूमेंट्स है जिसे देखने से स्पष्ट होता है –
1) संविधान का उद्देश्य
2) संविधान का विस्तार तथा
3) संविधान अंगीकृत करने की तिथि

प्रस्तावना उन उद्देश्यों का कथन है जिन्हें हमारा संविधान स्थापित करना चाहता है और आगे बढ़ाना चाहता है ।

संविधान की प्रस्तावना संविधान का सार है प्रस्तावना को भारतीय संविधान की कुंजी भी कहा जाता है ।

प्रस्तावना (Preamble)

प्रस्तावना का महत्व ( importance of preamble )

1) प्रस्तावना शासन की प्रणाली को स्पष्ट करती है ।
2) प्रस्तावना शासन के सिद्धान्तों को प्रकट करने में सहायक है।
3) प्रस्तावना राजनीतिक एवं नैतिक दृष्टि से शासनकर्ताओं को दायित्व का बोध कराती है तथा
जटिल परिस्थितियों में संविधान के ध्येयों को इंगित करती है ।
4) प्रस्तावना संविधान के संचालन में प्रकाश-स्तम्भ का कार्य करती है ।
5) प्रस्तावना संविधान का निचोड़ एवं संक्षिप्त रूप है ।
6) प्रस्तावना राष्ट्रीय एकता और अखंडता का आभास करवाती है ।

प्रस्तावना में प्रयुक्त महत्वपूर्ण पारिभाषिक शब्दों का अर्थ ( Meanings of Important Words Used in Preamble )

हम भारत के लोग

भारत के संविधान का निर्माण और अधिनियमन भारत के लोगों ने अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से किया है ना कि इसे किसी राजा या बाहरी आदमी ने उन्हें दिया है ।

संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न

लोगों को अपने से जुड़े हर मामले में फैसला करने का सर्वोच्च अधिकार है कोई भी बाहरी शक्ति भारत सरकार को आदेश नहीं दे सकती अर्थात आंतरिक और बाह्य मामलों में निर्णय लेने के लिए भारत संपूर्ण शक्ति रखता है और किसी भी विदेशी शक्ति को इसमें हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है ।

धर्मनिरपेक्ष

धर्म निरपेक्ष का अर्थ है यह है कि भारत में किसी राज्य का कोई धर्म नहीं है , भारतीय संविधान किसी एक धर्म को बढ़ावा नहीं देता है , यह सभी धर्मों के साथ एक समान व्यवहार करता है तथा सभी धर्मों का सम्मान करता है ।

नोट :- धर्मनिरपेक्षता का मतलब धर्म विरोधी होना बिल्कुल भी नहीं है ।

पंथनिरपेक्ष

भारतीय संविधान ना तो किसी पंथ विशेष को राजकीय पंथ का दर्जा देता है यह किसी एक पंथ को बढ़ावा नहीं देता , सारे पंथ एक समान है ।

गणराज्य

शासन का प्रमुख लोगों द्वारा चुना हुआ व्यक्ति होगा ना कि किसी वंश या राज खानदान का
अर्थात भारत का सर्वोच्च पदाधिकारी (राष्ट्रपति) निर्वाचित होगा अर्थात भारत का कोई भी नागरिक यदि अर्हता रखता है तो किसी भी पद में नियुक्त हो सकता है I

समता

कानून के समक्ष सभी लोग समान हैं पहले से चली आ रही सामाजिक असमानताओं को समाप्त होना होगा सरकार हर नागरिक को समान अवसर उपलब्ध कराने की व्यवस्था करें ।

बंधुता

हम सभी ऐसा आचरण करें जैसे हम एक परिवार के सदस्य हैं कोई भी नागरिक किसी दूसरे नागरिक को अपने से कम तर न माने ।

लोकतंत्रात्मक

सरकार का एक ऐसा स्वरूप जिसमें लोगों को समान राजनैतिक अधिकार प्राप्त रहते हैं, लोग अपने शासन का चुनाव करते हैं और उसे जवाबदेह बनाते हैं । यह सरकार कुछ बुनियादी नियमों के अनुरूप चलती है।

न्याय

नागरिकों के साथ उनकी जाति, धर्म और लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता।

स्वतंत्रता

नागरिक कैसे सोचें, किस तरह अपने विचारों को अभिव्यक्त करें और अपने विचारों पर किस तरह अमल करें, इस पर कोई अनुचित पाबंदी नहीं है।

समाजवादी

समाज में संपदा सामूहिक रूप से पैदा होती है और समाज में उसका बँटवारा समानता के साथ होना चाहिए। सरकार ज़मीन और उद्योग-धंधों की हकदारी से जुड़े कायदे-कानून इस तरह बनाए कि सामाजिक आर्थिक असमानताएँ कम हों ।

प्रस्तावना से जुड़े विभिन्न मामले ( Various Cases relating to the Preamble )

मदन गोपाल बनाम यूनियन ऑफ इंडिया 1957 ( Madan Gopal V. Union of India 1957 )

प्रस्तावना को न्यायालय में प्रवर्तित नहीं किया जा सकता यह निर्णय यूनियन ऑफ इंडिया बनाम मदन गोपाल 1957 के निर्णय में घोषित किया गया ।

बेरुबाड़ी यूनियन, 1960 ( Berubari Union, 1960 )

बेरुबाड़ी वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने प्रस्तावना को संविधान का अंग नहीं माना है इसलिए विधायिका प्रस्तावना में संशोधन नहीं कर सकती है ।

बेरुबारी यूनियन बाद में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि जहां संविधान की भाषा संदिग्ध हो वहां प्रस्तावना विधिक निर्वाचन में सहायता करती है ।

गोलकनाथ बनाम पंजाब राज्य 1967 (Golaknath V. Panjab state 1967)

न्यायमूर्ति हिदायतुल्लाह ने गोलकनाथ बनाम् पंजाब राज्य के प्रकरण में उद्देशिका को संविधान की मूल आत्मा कहा है।

केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य ( Keshavanand Bharti V. Kerala State) 1973

सर्वोच्च न्यायालय ने केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य वाद 1973 ईस्वी में कहा है कि प्रस्तावना संविधान का अंग है अर्थात प्रस्तावना में उसी प्रकार संशोधन (मूलभूत ढांचे के अलावा) किया जा सकता हैं जिस तरह संविधान के अन्य भाग में संशोधन किया जाता है ।

इसीमें सर्वोच्च न्यायालय ने मूल ढांचा का सिद्धांत ( Theory of Basic Structure) दिया तथा प्रस्तावना को संविधान का मूल ढांचा माना ।सर्वोच्च न्यायालय ने केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य वाद 1973 ईस्वी में कहा है कि प्रस्तावना संविधान का अंग है अर्थात प्रस्तावना में उसी प्रकार संशोधन (मूलभूत ढांचे के अलावा) किया जा सकता हैं जिस तरह संविधान के अन्य भाग में संशोधन किया जाता है ।इसीमें सर्वोच्च न्यायालय ने मूल ढांचा का सिद्धांत ( Theory of Basic Structure) दिया तथा प्रस्तावना को संविधान का मूल ढांचा माना ।

एस.आर. बोम्मई बनाम भारत गणराज्य ( S. R. Bommai v. Union of India ) 1994

सर्वोच्च न्यायालय ने एस. आर. बोम्मई वाद में कहा है कि प्रस्तावना संविधान की आधारभूत संरचना है ।

बोम्मई बनाम् यूनियन ऑफ इंडिया के मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि उद्देशिका संविधान का अभिन्न अंग है।

प्रस्तावना से सम्बन्धित महत्वपूर्ण तथ्य ( Important facts about Preamble )

पं. जवाहर लाल नेहरू द्वारा संविधान सभा में 13 दिसम्बर 1946 को प्रस्तुत एवं 22 जनवरी 1947 को स्वीकृत उद्देश्य प्रस्ताव को ही भारतीय संविधान की प्रस्तावना (उद्देशिका) में शामिल कर लिया गया।

प्रस्तावना, अमेरिकी संविधान (प्रथम लिखित संविधान) से ली गई है, लेकिन प्रस्तावना की भाषा पर ऑस्ट्रेलियाई संविधान की प्रस्तावना का प्रभाव है।

प्रस्तावना के अनुसार संविधान के अधीन समस्त शक्तियों का केंद्र बिंदु अथवा स्रोत ” भारत के लोग ” ही है I

हम भारत के लोग प्रस्तावना की शुरुआत में लिखा है जिसके दो मतलब हैं भारतीय संविधान का स्रोत जनता है तथा जनता ही सर्वोच्च है I

प्रस्तावना से संविधान के उद्देश्य पता चलते हैं :- न्याय स्थापित करना , स्वतंत्रता स्थापित करना तथा समानता स्थापित करना ।

प्रस्तावना तीन प्रकार के न्याय की बात करता है :- सामाजिक न्याय , आर्थिक न्याय तथा राजनीतिक न्याय I

प्रस्तावना में पांच प्रकार की स्वतंत्रता की बात है :-
1) विचार की स्वतंत्रता ।
2) अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ।
3) विश्वास की स्वतंत्रता ।
4) धर्म की स्वतंत्रता ।
5) उपासना की स्वतंत्रता ।

नोट :- मौलिक अधिकार के अनुच्छेद 19 में छह प्रकार की स्वतंत्रता का उल्लेख है ।

प्रस्तावना में दो प्रकार की समानता की बात कही गई है प्रतिष्ठा की समानता तथा अवसर की समानता ।

नोट :- अनुछेद 16 में भी अवसर की समानता का वर्णन है ।

प्रस्तावना में स्वतंत्रता , समानता तथा बंधुत्व शब्दों को फ्रांस से लिया गया है यह शब्द फ्रांसीसी क्रांति के नारे थे I

बंधुत्व शब्द प्रस्तावना तथा अनुच्छेद 51(A) मूल कर्तव्य दोनों जगह वर्णित है ।

प्रस्तावना में संविधान को अंगीकृत करने की तिथि 26 नवंबर 1949 का भी उल्लेख है ।

प्रस्तावना में भारत शब्द का प्रयोग दो बार हुआ है जो कि पहली लाइन में ही हुआ है ।

42 वें संविधान संशोधन अधिनियम 1976 द्वारा उद्देशिका में संशोधन कर तीन नए शब्द पंथनिरपेक्ष , समाजवादी और अखंडता जोड़े गए जो मूल संविधान में नहीं थे प्रथम पैरा में समाजवादी और पंथनिरपेक्ष’ शब्द तथा छठें पैरा में ‘और अखण्डता’ शब्द जोड़ा गया है।

मूल उद्देशिका में भारत को – सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न , लोकतंत्रात्मक , गणराज्य बनाने का संकल्प लिया गया था I

भारतीय संविधान की प्रस्तावना में (वर्तमान) भारत को – सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, पंथ-निरपेक्ष, लोकतांत्रिक, गणराज्य के रूप में घोषित किया गया है ।

संविधान निर्माताओं के विचारों को जानने की कुंजी प्रस्तावना है।

उद्देशिका न्याय योग्य नहीं है; अर्थात इसके आधार पर कोई निर्णय नहीं दिया जा सकता।

भारतीय संविधान की प्रस्तावना में वर्णित उद्देश्यों एवं आदर्शों की व्याख्या संविधान में मूल अधिकारों, नीति निदेशक सिद्धान्तों एवं मूल कर्तव्य के अध्यायों में की गयी है ।

विश्व का प्रथम पंथ निरेपक्ष राष्ट्र संयुक्त राज्य अमेरिका है ।

राज्य का सबसे महत्वपूर्ण तत्व सम्प्रभुता है ।

भारतीय संविधान की प्रस्तावना में आर्थिक स्वतंत्रता का उल्लेख नहीं है।

संविधान की उद्देशिका में अब तक सिर्फ एक बार (1976) संशोधन किया गया है ।

एस. आर. बोम्बई बनाम भारत संघ के वाद में पंथ-निरपेक्षता को संविधान का आधार भूत ढाँचा घोषित किया गया ।

भारत में सम्प्रभु हम भारत के लोग है ।

संसद संविधान की मूल ढांचा में नकारात्मक संशोधन नहीं कर सकती है स्पष्टतः संसद वैसा संशोधन कर सकती है जिससे मूल ढांचा का विस्तार मजबूत होता है ।

लोक कल्याण शब्द संविधान की प्रस्तावना में नहीं है ।

प्रस्तावना के अनुसार भारत के शासन की शक्ति जनता के पास है ।

संविधान की प्रस्तावना वह प्रावधान जो कि सभी नागरिकों को मतदान का अधिकार देता है प्रजातंत्र कहलाता है ।

प्रस्तावना से संबंधित महत्वपूर्ण व्यक्तियों के विचार ( Views of important persons related to the Preamble )

के. एम. मुंशी के अनुसार :- उद्देशिका को ‘राजनीतिक जन्मपत्री’ (Political Horoscope) संज्ञा प्रदान की है।
प्रस्तावना भारतीय संविधान की जन्म कुंडली है ।

पंडित ठाकुर दास भार्गव के अनुसार – प्रस्तावना संविधान का सबसे महत्वपूर्ण अंग है यह विधान की आत्मा है यह विधान (कानून) की कुंजी है ।

हिदायतुल्लाह के शब्दों में – भारतीय संविधान की प्रस्तावना समूचे संविधान की आत्मा है सास्वत तथा अपरिवर्तनीय है प्रस्तावना में समूचे संविधानिक जीवन के वैविध का भी उल्लेख मिलता है और भविष्य दर्शन भी ।

डॉक्टर सुभाष कश्यप के मतानुसार संविधान राष्ट्र का मूलभूत अधिनियम है वह राज्य के विभिन्न अंगों का गठन कर उन्हें शरीर देता है शक्ति देता है उसके शरीर गठन के पीछे अंगों के व्यवस्था के पीछे एक प्रेरणा होती है एक आत्मा होती है जिसको शब्द रूप मिलता है प्रस्तावना में ।

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