Bharat shasan adhiniyam 1919|भारत शासन अधिनियम,1919 की विशेषताएं|#indian polity|#mppsc

भारत शासन अधिनियम 1919 के समय भारत सचिव मोंटेग्यू एवं गवर्नर जनरल चेम्सफोर्ड थे

यह अधिनियम 1921 से लागू हुआ

इस अधिनियम की प्रस्तावना में उत्तरदाई शासन शब्द का उल्लेख किया गया ऐसा पहली बार हुआ कि अंग्रेजो के द्वारा बनाए गए किसी कानून में इस प्रकार का शब्द लिखा गया

इस अधिनियम के द्वारा पहली बार महिलाओं को मत देने का अधिकार दिया गया

पहली बार केंद्र व राज्य सरकारों का गठन किया गया तथा कार्यों का बंटवारा किया गया लेकिन बटवारा स्पष्ट नहीं था

भारत में पहली बार प्रांतों में द्वैध शासन की शुरुआत की गई जिसमें प्रांतीय विषयों को दो वर्गों में विभाजित किया गया

आरक्षित विषय इसके अंतर्गत वित्त, न्याय पुलिस, भूमि कर, अकाल सहायता, पेंशन अपराधिक जातियां, समाचार पत्र छापाखाना, औद्योगिक विवाद, सिंचाई जल मार्ग, सार्वजनिक सेवाएं, खान, बिजली, श्रमिक कल्याण, बंदरगाह आदि

हस्तानांतरित विषय इसके अंतर्गत सार्वजनिक निर्माण विभाग, शिक्षा, चिकित्सा सहायता, स्थानीय स्वायत्त शासन आबकारी दल, पुस्तकालय, संग्रहालय आदि

आरक्षित विषय पर विधि बनाने का अधिकार गवर्नर को था जबकि हस्तांतरित विषय पर विधि बनाने का अधिकार प्रांतीय विधानमंडल के भारतीय मंत्री द्वारा किया जाता था

भारत सचिव को यह अधिकार प्रथम बार प्राप्त हुआ कि वह किसी भारतीय को महालेखा परीक्षक नियुक्त कर सकता है
इस आयोग के द्वारा पहली बार

लोक सेवा आयोग का प्रावधान किया गया लेकिन यह केंद्र स्तर पर होगा या राज्य स्तर पर इस प्रकार का कोई प्रावधान नहीं किया गया

इस अधिनियम के द्वारा संप्रदायिक निर्वाचन प्रणाली का विस्तार किया गया सिख, भारतीय ईसाई, एंग्लो इंडियन तथा यूरोपियन यह चार वर्ग जोड़ दिए गए

Note – 1909 के अधिनियम में पहली बार संप्रदायिक निर्वाचन की शुरुआत की गई जिसमें मुस्लिम को संप्रदायिक निर्वाचन प्रणाली में शामिल कर शुरुआत की गई. भारत में सांप्रदायिकता का जनक – मिन्टो

देसी रियासतों की समस्याओं पर विचार करने हेतु नरेंद्र मंडल का प्रावधान किया गया पहली बार देसी रियासत शब्द का उल्लेख 1919 के एक्ट में किया गया नरेंद्र मंडल देसी रियासतों के राजा महाराजा का एक संगठन था जिसके प्रथम चांसलर गंगा सिंह बीकानेर के महाराजा थे

इस अधिनियम प्रावधान किया गया था कि इस अधिनियम की समीक्षा 10 वर्षों में की जाएगी इस हिसाब से 1929 में इसकी समीक्षा की जानी थी लेकिन 1923-24 में जिस तरह से भारत में घटनाएं घट रही थी जिस तरह से स्वराज पार्टी की गतिविधियों बढ रही थी जिससे अंग्रेज थोड़े से घबराए हुए थे उन्होंने 10 वर्ष का इंतजार ही नहीं किया और 1927 में ही साइमन कमीशन की नियुक्ति कर दी गई और 1928 में साइमन कमीशन भारत आया सर जॉन साइमन और इसके अध्यक्ष थे इसमें सात सदस्य थे जिसमें कोई भी भारतीय नहीं था

1919 की अधिनियम की समीक्षा करने हेतु 1927 में सर जॉन साइमन की अध्यक्षता में एक वैधानिक आयोग का गठन किया गया इस आयोग में सभी सदस्य अंग्रेज होने के कारण इसे श्वेत आयोग कहा जाता है इस आयोग में एक भी सदस्य भारतीय नहीं होने कारण भारतीयों ने इसका विरोध किया

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